रकीबों के किस्से

Author: Kapil Sharma / Labels:

रकीबों के किस्से इस शर्त पे सुनाते है वो,
अश्कों का आँखों में इक कतरा भी ना हो

नश्तर बेदर्दी से जुबां पर चलाते हैं खुद,
ये भी पूछते हैं, कुछ कहते नहीं, क्या बेजुबान हो?

कलाम अपना हमसे लिखाकर, भूल गए, हमराज़
रहम खुदा, मिले तो शक्ल पहचान ले वो

कुछ उफ्ताद ना हो जाये, ज़िक्र पर, खामोश हूँ,
वर्ना नाम कहाँ छोड़ते हैं, अफसाना गो

क्यों बेजार करते हो नहाक नींदें उसकी
गुमाँ सुर्ख आस्थिनों का क्यों उनको होने दो

5 comments:

Kapil Sharma said...

thnx

Kapil Sharma said...
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संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

रकीबों के किस्से इस शर्त पे सुनाते है वो,
अश्कों का आँखों में इक कतरा भी ना हो


आँखों मे कतरे तो नही आयेगे लेकिन लहू न आने का तो कोई वायदा नही न..

बहुत ही प्यारे शेर..

Kapil Sharma said...

bahut bahut dhanywaad Pankaj Bhai

अंतर्मन